रस सिन्दूर आयुर्वेद की महौषधि है. शुद्ध पारा और शुद्ध गंधक के मिश्रण से बनी यह दवा अपने आप में बेजोड़ है. अनुपान भेद से यह कई तरह की बीमारियों को दूर करता है. यह योगवाही गुणों से भरपूर है यानी जिस भी दवा के साथ इसे मिलाकर यूज़ करेंगे उसका पॉवर यह बढ़ा देता है.
यह उष्ण वीर्य यानि तासीर में गर्म होती है, यह रक्तदोष को दूर करता है, ब्लड फ्लो बढ़ाता है और हार्ट को शक्ति देता है. पित्त वाले रोगों में इसका इस्तेमाल नहीं करना चाहिए, अगर ज़रूरी हो तो पित्त नाशक दवाओं के साथ दे सकते हैं जैसे – गिलोय सत्व, मोती पिष्टी, प्रवाल पिष्टी, कामदुधा रस वगैरह के साथ.
कफजन्य या कफ़ वाले रोगों में यह बेहद असरदार है. न्युमोनिया, उरस्तोय(प्लुरीसी), इन्फ्लुएंजा, श्वासरोग, कफ़ वाली खांसी(कफज कास), इसनोफ़िलिया, संग्रहणी, सन्निपात, कफ प्रधान प्रमेह, धातुक्षीणता और नपुंसकता जैसे रोगों में इसका प्रयोग करना चाहिए.
रस सिन्दूर की मात्रा और सेवन विधि –
125mg से 250mg तक रोज़ दो-तीन बार तक शहद, अद्रक के रस या फिर रोगानुसार उचित अनुपान के साथ लेना चाहिए.
Packing- 5 gram





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