इसे सोना माखी के नाम से भी जाना जाता है. इसमें स्वर्ण या सोना नहीं होता फिर भी सोने जैसे गुण पाए जाते हैं. यह कफ़ और पित्त वाले रोगों के लिए बेजोड़ है. आयुर्वेदानुसार यह तासीर में शीतवीर्य यानि ठण्डी, खून बढ़ाने वाली, योगवाही, बलवर्धक और रसायन है. यह पित्तदोष, रक्त पित्त, एसिडिटी, जौंडिस/हेपेटाइटिस(पांडु, कामला), जीर्ण ज्वर, नीन्द नहीं आना, सर्द दर्द, दिमाग की गर्मी और आँखों की बीमारियों में असरदार होती है.
स्वर्णमाक्षिक भस्म की मात्रा और सेवन विधि – 125mg से 250mg तक सुबह-शाम शहद, मक्खन, मिश्री या रोगानुसार अनुपान से लेना चाहिए.
Packing- 5 gram
Reviews
There are no reviews yet