कम्पोजीशन-
स्वर्ण भस्म, अभ्रक भस्म, मोती पिष्टी, प्रवाल भस्म, रौप्य भस्म, वंग भस्म, रस सिन्दूर, स्वर्णमाक्षिक भस्म, कज्जली, शुद्ध टंकण, शुद्ध हरताल, शुद्ध कुचला, असगंध, लौंग, जावित्री, जायफल, काकोली, काकड़ासिंघी, हर्रे, बहेड़ा, आंवला, शुद्ध बच्छनाग, अरणी की जड़, त्रिकटु, अजवायन, चित्रकमूल छाल, वायविडंग, सफ़ेद जीरा भुना हुआ, सज्जी क्षार, सेंधा नमक, सौवर्च नमक, समुद्र लवण
भावना- गोरखमुंडी, संभालू, ग्वारपाठा और जम्बिरी निम्बू की एक-एक भावना देकर बनाया जाता है.
‘वात रोग नाशक योग’ के फ़ायदे –
- साइटिका की बीमारी नयी हो या पुरानी, तरह-तरह की दवाओं को खाने से भी फ़ायदा न हुआ हो तो इस योग के सेवन से बीमारी दूर हो जाती है.
- जोड़ों का दर्द, कमर दर्द, आमवात, संधिवात, अर्थराइटिस, रुमाटायड अर्थराइटिस, लकवा, फेसिअल पैरालिसिस, पक्षाघात, एकांगवात, अर्धांगवात, स्लिप डिस्क, हर तरह की Spondylosis, मसल्स का दर्द, Frozen Shoulder, Stiffneck, नर्व पेन, हाथ-पैर काम्पना, सर हिलना जैसे हर तरह के वातरोगों में यह बेहद असरदार है
- आम का पाचन करता है, गैस दूर करता है और पाचन शक्ति को ठीक करता है.
‘वात रोग नाशक योग’ की मात्रा और सेवन विधि –
एक से दो कैप्सूल सुबह-शाम भोजन के बाद 4 स्पून महारास्नादि क्वाथ के साथ लेना चाहिए. अगर समस्या अधीक न हो तो एक-एक कैप्सूल दूध से भी ले सकते हैं. यह ऑलमोस्ट सेफ़ दवा है, इसे लगातार तीन से छह महिना तक भी ले सकते हैं सही डोज़ में.
सावधानी – वैसे इस से कोई नुकसान नहीं होता परन्तु इसमें शुद्ध कुचला की थोड़ी मात्रा होती है, जिसके कारन पित्त प्रकृति वाले रोगी या जिनका पित्त दोष बहुत बढ़ा हो तो कम डोज़ में सेवन में सेवन करें और दूध का प्रयोग किया करें.
Packing- 60 Capsule
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